रसोईघर का निर्माण वास्तु सम्मत होना क्यों चाहिए
प्रिय पाठकों/दर्शकों/मित्रों, हिंदू धर्म में बहुत से लोग वास्तु के अनुसारहर काम करते है| यह एक ऐसा विज्ञान है जो जीवन के हर एक पहलू से जुड़ा होता है| घरहो या फिर ऑफिस, पढ़ाई हो या फिर नौकरी के बारें में| वास्तु इन हर चीजों से जुडाहुआ है|हम सभी चाहते है कि हम अपने जीवन में हमेशा खुश रहे हमें कोई भी कभी भी परेशानी है| तो ऐसे उपाय अपनाने लगते है जिससे कि आपको हर समस्या से निजात मिल जाए |
वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार वास्तुशास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जिसके द्वारा हम हर समस्या से तुरंत निजात पा लेते है |वास्तुशास्त्र में भवननिर्माण में रसोईघर को सबसे अधिक महत्त्व दिया गया है। इस कक्ष के निर्माण के लिएआग्नेयकोण अर्थात् पूरब और दक्षिण के मध्य भाग को सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है। इनदिशाओं के बारे में विवरण चित्रांकन द्वारा विगत अंक में दिया जा चुका है।आग्नेयकोण शास्त्रों के अनुसार धन-धान्य रूपी लक्ष्मी का स्थान है। अतः उस दिशा मेंलाल रंग के तेजोमय प्रकाश का प्रक्षेपित होना गृह निर्माता या उस भवन में निवासकरने वालों के लिए शुभदायक माना जाता है, इसीलिए इस दिशा में चूल्हे में चौबीस घंटेअखंड अग्नि या दीपक जलाए रखने की प्राचीन भारतीय परंपरा रही है। इससे वास्तु संबंधीत्रुटियों एवं दोषों का परिमार्जन हो जाता है और निवासकर्त्ता सुख-शान्तिमय जीवनव्यतीत करते हैं।
कहा जा चुका है कि भवन के दक्षिण-पूरब दिशा अर्थात् आग्नेयकोण में किचन यानीरसोईघर तथा पश्चिम दिशा में ‘डाइनिंग हाल' अर्थात् भोजनकक्ष का निर्माण करना चाहिए।इससे एक ओर जहाँ स्वादिष्ट भोजन प्राप्त होता है, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक सदस्योंका मन-मस्तिष्क संतुलित रहता है और वे स्वस्थ बने रहते हैं तथा प्रगति करतेहैं।
इस संदर्भ में वास्तुविद्या विशारदों ने कहा भी है- “पाकशाला अग्निकोणेस्यात्सुस्वादुभोजनाप्तये” अर्थात् दक्षिण-पूर्व दिशा में रसोईघर बनाने सेस्वादिष्ट भोजन प्राप्त होता है। मनमाने ढंग से रसोई घर जिस-तिस दिशा में निर्मितकरा लेने से शारीरिक-मानसिक परेशानियों, आर्थिक संकटों एवं पारिवारिक कलह-क्लेशोंका सामना करना पड़ता है।
वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार उत्तर दिशा या उत्तर-पूरब पश्चिमदिशा एवं नैऋत्य कोण अथवा दक्षिण दिशा के मध्य में रसोई कक्ष का निर्माण नहीं करनाचाहिए। अगर कोई विकल्प न हो तो पूरब दिशा या पश्चिमी वायव्य कोण में रसोईघर बनायाजा सकता है। चीनी वास्तुविद्या 'फेन सुई’ के अनुसार दक्षिण दिशा अग्नितत्त्व का एवंपूरब दिशा काष्ठतत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है। अतः रसोईकक्ष मुख्य भवन केआग्नेयकोण या पूरब दिशा में बनाना चाहिए। लकड़ी आग जलाने में प्रयुक्त होती है, इसलिए आग्नेय कोण इसके लिए सबसे उपयुक्त स्थान है।
वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार वास्तुशास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जिसके द्वारा हम हर समस्या से तुरंत निजात पा लेते है |वास्तुशास्त्र में भवननिर्माण में रसोईघर को सबसे अधिक महत्त्व दिया गया है। इस कक्ष के निर्माण के लिएआग्नेयकोण अर्थात् पूरब और दक्षिण के मध्य भाग को सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है। इनदिशाओं के बारे में विवरण चित्रांकन द्वारा विगत अंक में दिया जा चुका है।आग्नेयकोण शास्त्रों के अनुसार धन-धान्य रूपी लक्ष्मी का स्थान है। अतः उस दिशा मेंलाल रंग के तेजोमय प्रकाश का प्रक्षेपित होना गृह निर्माता या उस भवन में निवासकरने वालों के लिए शुभदायक माना जाता है, इसीलिए इस दिशा में चूल्हे में चौबीस घंटेअखंड अग्नि या दीपक जलाए रखने की प्राचीन भारतीय परंपरा रही है। इससे वास्तु संबंधीत्रुटियों एवं दोषों का परिमार्जन हो जाता है और निवासकर्त्ता सुख-शान्तिमय जीवनव्यतीत करते हैं।
कहा जा चुका है कि भवन के दक्षिण-पूरब दिशा अर्थात् आग्नेयकोण में किचन यानीरसोईघर तथा पश्चिम दिशा में ‘डाइनिंग हाल' अर्थात् भोजनकक्ष का निर्माण करना चाहिए।इससे एक ओर जहाँ स्वादिष्ट भोजन प्राप्त होता है, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक सदस्योंका मन-मस्तिष्क संतुलित रहता है और वे स्वस्थ बने रहते हैं तथा प्रगति करतेहैं।
इस संदर्भ में वास्तुविद्या विशारदों ने कहा भी है- “पाकशाला अग्निकोणेस्यात्सुस्वादुभोजनाप्तये” अर्थात् दक्षिण-पूर्व दिशा में रसोईघर बनाने सेस्वादिष्ट भोजन प्राप्त होता है। मनमाने ढंग से रसोई घर जिस-तिस दिशा में निर्मितकरा लेने से शारीरिक-मानसिक परेशानियों, आर्थिक संकटों एवं पारिवारिक कलह-क्लेशोंका सामना करना पड़ता है।
वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार उत्तर दिशा या उत्तर-पूरब पश्चिमदिशा एवं नैऋत्य कोण अथवा दक्षिण दिशा के मध्य में रसोई कक्ष का निर्माण नहीं करनाचाहिए। अगर कोई विकल्प न हो तो पूरब दिशा या पश्चिमी वायव्य कोण में रसोईघर बनायाजा सकता है। चीनी वास्तुविद्या 'फेन सुई’ के अनुसार दक्षिण दिशा अग्नितत्त्व का एवंपूरब दिशा काष्ठतत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है। अतः रसोईकक्ष मुख्य भवन केआग्नेयकोण या पूरब दिशा में बनाना चाहिए। लकड़ी आग जलाने में प्रयुक्त होती है, इसलिए आग्नेय कोण इसके लिए सबसे उपयुक्त स्थान है।
- Powered by / Sponsored by :