चूल्हा, गैस स्टोव आदि को कहाँ रखा जाए और कहाँ नहीं

चूल्हा, गैस स्टोव आदि को कहाँ रखा जाए और कहाँ नहीं

  वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की किसी भी घर/व्यक्ति का चूल्हा देखकर उसकी संपन्नता-विपन्नता का पता लगाया जा सकता है। चूल्हे को वित्तीय स्थितिका प्रतीक माना गया है। इसलिए वास्तुवेत्ता इस ओर अधिक ध्यान देते हैं। उनकेमतानुसार रसोईघर में चूल्हा, गैस स्टोव आदि को कहाँ रखा जाए और कहाँ नहीं, यह बातअधिक महत्त्व रखती है। चूल्हा चाहे लकड़ी-कोयले से जलने वाला हो या फिर गैस से जलनेवाला गैस बर्नर, उसे रसोईकक्ष में इस प्रकार रखा जाना चाहिए, जिससे खाना बनाने वालेका मुँह दरवाजे की ओर न पड़े। यह तो हो सकता है कि रसोई में काम करने वाला व्यक्तिघर में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को देख सके, उनकी जानकारी रख सके, किंतु बाहरीव्यक्ति की नजर उस पर नहीं पड़नी चाहिए। प्रवेश द्वार के सामने रसोईकक्ष शुभ नहींमाना जाता है।
 
वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कभी भी चूल्हे या स्टोव, बर्नर कोसिंक अथवा फ्रीज के बगल में नहीं रखना चाहिए। इसी तरह पानी की टंकी, कलश, घड़ा आदिभी चूल्हे के सामने नहीं होने चाहिए। इससे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है औरपरिवार में लड़ाई-झगड़ा होता रहता है। कारण आग और पानी परस्पर विरोधी तत्त्व हैं।इनमें आपस में बैर हैं। अतः रसोईघर में दोनों को आमने-सामने रखने पर पारिवारिकसंघर्ष को बढ़ावा मिलना स्वाभाविक है। रसोई में जलपात्र का उपयुक्त स्थानउत्तर-पूरब ईशान कोण है। अतः इसे उसी दिशा में रखना चाहिए। गैसबर्नर, हीटर यास्टोव, चूल्हा आदि को रसोईकक्ष के बीचों-बीच रखना अशुभ माना जाता है। इन्हें दीवारसे तीन-चार इंच दूर हटाकर रखना चाहिए। जहाँ तक हो सके, चूल्हे को खिड़की के नीचे नरखा जाए। इससे खिड़की के अंदर बाहर से आने वाली धूल आदि के कारण भोजन की गुणवत्ताप्रभावित होती है।
 
वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की किचन/रसोईकक्ष में गैससिलेंडरया अन्य भारी सामान दक्षिण में रखना चाहिए। यदि रसोईकक्ष पश्चिम वायव्य दिशा में हैतो गैससिलेंडर पश्चिम दिशा के मध्य में रखना उचित रहता है। खाली एवं अतिरिक्तगैससिलेंडर आदि नैऋत्य कोण में रखे जाते हैं। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए किगैस सिलेंडर को स्लैब के नीचे गैस चूल्हे से जोड़कर इस प्रकार रखा जाए, जिससे गैसचालू करते या बंद करते समय रेगुलेटर की ‘नाँब’ घुमाने के लिए पर्याप्त जगह रहे। गैसट्यूब स्टेंडर्ड कंपनी का होना चाहिए और समय-समय पर उसे बदलते रहना चाहिए। गैसचूल्हा स्लैब पर आग्नेय क्षेत्र के पूरब में रखना चाहिए। यदि एक से अधिक गैसकनेक्शन हों, तो मुख्य गैस चूल्हे को, जो अधिकतर प्रयुक्त होता है, उसे आग्नेयक्षेत्र के पूरब में तथा अन्य गैस चूल्हें को जा कभी-कभी ही काम में लाए जाते हैं, आग्नेय क्षेत्र के दक्षिण में रखना चाहिए।
 
वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार, अगर रसोई दक्षिण पूरब में है औरगैसबर्नर या स्टोव आदि पूर्वी दीवार की तरफ रखे गए हैं, तो स्वभावतः खाना बनानेवाले का मुँह पूरब की ओर रहेगा। इस दिशा में मुँह करके पकाया गया भोज्यपदार्थ स्वादएवं सेहत दोनों ही दृष्टि से उत्तम माना जाता है। इसी तरह यदि रसोईघर उत्तर-पश्चिमअर्थात् वायव्यकोण में है, तो उसके भी परिणाम अच्छे प्राप्त होते हैं। अगर उक्तदोनों ही व्यवस्थाएँ न बन पड़े तो दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके भी भोजन बनाया जासकता है। उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर मुँह करके खाना पकाना अच्छा समझा जाता। चीन मेंरसोई से संबंधित गैस, अँगीठी, स्टोव, कुकर आदि को बहुत महत्त्व दिया जाता है। वहाँअन्न को भाग्य का प्रतीक माना जाता है। भोजन के साथ व्यक्ति की भावनाएँ, व्यवहारएवं स्वास्थ्य भी जुड़ा होता है। चीनियों की मान्यता है कि भोजन बनाने वाली महिलाया पुरुष की पीठ अगर दरवाजे की ओर है तो इससे गृहस्वामी को स्वास्थ्य एवं आर्थिकहानि उठानी पड़ती है।
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